भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शनमोहनदेव-धर्मपाल
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हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन-वि0सं0 700 से 2000 तक (सन् 643 से 1943 तक)
हिन्दी-साहित्य का उद्भव और विकास
उद्भव और वर्गीकरण-
हिन्दी भाषा व साहित्य का प्रारंभ वि.सं० ७०० के लगभग हुआ, आज यह सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया है। संवत् ७०० से लेकर आज तक के हिन्दी-साहित्य को सुविधा की दृष्टि से हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं-
१. प्राचीन साहित्य और २. आधुनिक साहित्य।
संवत् ७०० से १९०० तक १२०० वर्षों में निर्मित हिन्दी-साहित्य 'प्राचीन साहित्य' की कोटि में परिगणित है और
संवत् १९०० से लेकर आज (संवत् २०६३) तक का साहित्य 'आधुनिक साहित्य' कहलाता है।
लेखकों अर्थात् साहित्यकारों की दृष्टि से वज्रयान शाखा के सिद्ध सरहपा (सरोजवज्र) से लेकर पद्माकर तक का साहित्य 'प्राचीन साहित्य' के अन्तर्गत आयेगा और
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर श्री 'दिनकर', 'अंचल' आदि तक के साहित्य को 'आधुनिक साहित्य' की संज्ञा दी गई है। प्राचीन व आधुनिक दोनों प्रकार के साहित्य को हम कालक्रम व विषय की दृष्टि से फिर प्रमुख चार-चार भागों में बाँट सकते हैं।
प्राचीन काल (सं० ७०० से १९००) के चार प्रमुख भाग हैं -
१. संक्रमण काल (सं० ७०० से १०५०), २. वीरगाथा-काल (सं० १०५० से १३७५), ३. भक्ति-काल(सं. १३७५ से १७००), ४. रीति काल (सं. १७०० से १९००)
आधुनिक काल (सं. १९०० से.... ) के चार प्रमुख भाग हैं -
१. भारतेन्दु-प्रचार-युग, २. संस्कार-युग, ३. सुकुमार छायावाद-युग, ४. प्रगति-युग
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